Tuesday, March 24, 2015

हज़ारों तरह के ये होते हैं आंसू

कल जब वर्ल्ड्कप क्रिकेट के सेमीफाइनल मुकाबले का अंत हुआ तो दक्षिण अफ्रीका के कुछ खिलाड़ियों को मैदान पर बैठ कर रोते हुए देखा गया। इस विलक्षण दृश्य के कई कारण हो सकते हैं।
-धुआंधार फ़ील्डिंग के दौरान आँख में कुछ गिर जाना।
-खेल में पराजय हो जाना।
-समस्त विश्व की आँखों का तारा बने आभामंडल से अकस्मात् छिटक कर बाहर हो जाना।
-ज़िंदगी में आसानी से न मिलने वाले एक शानदार अवसर का हाथ से फिसल जाना।
-खेल-खेल में कोई भीतरी चोट लग जाना।
कहते हैं कि हज़ारों तरह के ये होते हैं आंसू।
लेकिन आंसुओं से दुनिया ठहरती नहीं है। कल फिर आएंगे उम्मीदों के नए सितारे।            

Saturday, March 14, 2015

कॉमेंट्रेटर नहीं हैं कपिलदेव

क्रिकेट ने विश्व को भारत से जो सितारे दिए हैं उनमें सर्वाधिक चमक बिखेरने वाले नामों में कपिलदेव का नाम शामिल है।
मुझे याद है, मुझे क्रिकेट की कॉमेंट्री सुनते हुए लगभग बावन साल तो हो गए हैं।  बचपन में हम लोग ट्रांज़िस्टर से कान लगाए आँखों देखा हाल सुनते थे, और अब हम सब अपनी आँखों से देखते हुए नेपथ्य से, पार्श्व विवरण के रूप में कॉमेंट्री सुनते हैं।
पहले खेलने वाले और होते थे और खेल के टिप्पणीकार और।  अब ज़्यादातर पूर्व खिलाड़ी ही कॉमेंट्री करते हैं। इस बदलाव के नतीजे बहुत बेहतर हैं। इससे हम उन्हीं लोगों से सुनते हैं जो खुद भी खेल के माहिर हैं, और हम तकनीकी बातों की पेचीदगियों को विश्वसनीयता से देख भी पाते हैं।
लेकिन आप कपिलदेव को कॉमेंट्री करते हुए थोड़ा ध्यान से सुनिए।  आपको लगेगा कि वे कॉमेंट्री नहीं कर रहे।  कॉमेंट्री तो वह होती है, जिसमें जो कुछ हो जाये, उस पर टिप्पणी की जाये। किन्तु कपिल लगभग सभी वे बातें आपको पहले ही बता देते हैं, जो होने वाली हैं। और मज़ेदार बात ये, कि वही होता भी है।इस विश्वविजेता का लम्बा अनुभव और खेल-कौशल किसी खिलाड़ी की तैयारी ,बॉडी- लैंग्वेज,परिस्थिति, तथा मौके की नज़ाकत को पहले ही भांप कर वह सबकुछ पहले ही कहलवा देता है, जो होने वाला है। ध्यान से सुनिए, हैरान कर देने वाली  पूर्वोक्तियां आपको चौंका देंगी।             

Friday, March 13, 2015

आपका सपना किसी दूसरे की आँखों में क्यों और कैसे जाता है?

आपने साहित्य या फिल्मों में तो ऐसी हास्य स्थितियां देखी होंगी जब किसी मरणासन्न व्यक्ति को लेने यमदूत आये, और वे गफलत में किसी दूसरे को उठा ले गए। कभी-कभी हॉरर फिल्म के निर्माताओं ने भी ऐसे दृश्य दिखाए हैं जो हास्य या भय निर्मित करते हैं।
लेकिन आपको ये जान कर अचम्भा होगा कि किसी व्यक्ति को नींद के दौरान आने वाला संभावित सपना कभी-कभी वास्तव में किसी और की आँख में स्थलांतरित हो जाता है।
ऐसा होने के कई कारण हैं।
यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने आपके बारे में लगातार बहुत देर तक सोचा हो, तो हो सकता है कि जो बातें स्वाभाविक नींद में आपके स्वप्न में आने वाली थीं,उनमें से कुछ छिटक कर उस व्यक्ति की आँखों में जगमगाने लगें जो आपके बारे में सोचता रहा है। यहाँ "सोच"बैट्री का काम करती है, और ये 'कॉन्फ्रेंसिंग' हो जाती है। ये क्रिया क्षणिक ही होती है, किन्तु स्पष्ट और याद रखने लायक़ हो सकती है।
दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि यदि किसी दिन आप और कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल समान परिस्थितियों [विशेष,जैसे दुर्घटना,डूबना, आदि ] से गुज़रे हों तो उसके स्वप्न-संकेत आपको भी कुदरतन सूचित हो सकते हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि ऐसे व्यक्ति से आपकी दूरी की कोई सीमा नहीं है।
प्रायः दोनों ही स्थितियों में दूसरा व्यक्ति आपका रक्त- सम्बन्धी नहीं होगा।  

Thursday, March 12, 2015

अच्छा ऐसे हैं चीन-जापान !

कुछ समय पहले तक हमें ये बात हैरत में डालती थी कि ओलिम्पिक खेलों में जहाँ हमारा देश एक-एक पदक के लिए लालायित रहता है, वहीँ चीन जैसे देश स्वर्ण-पदकों का अम्बार लगा देते हैं।जब "लौह-पर्दा" हटा तो पता चला कि चीन में बालक पैदा होते ही, जैसे ही आँखें खोलता है तो वह अपने को खेल-प्रशिक्षकों के क्रूर पंजों में पाता है,जो उसे किसी मछली की भांति स्विमिंग पूलों में डुबकियां लगवाते हैं, ताकि पंद्रह-सोलह साल का होते ही वह तैराकी का विश्व-विजेता बन जाये। और तब हम इस विचार दुविधा में बँट गए कि हमें सोना चाहिए या बचपन?
ऐसे ही अब जापानी बच्चों की संजीदगी का राज़ भी आखिर खुल ही गया।  वे बचपन से ही बुद्ध-महावीर की भांति गुरु-गंभीरता से ध्यानमग्न इसलिए दिखाई देते रहे , क्योंकि उन पर बचपन से ही शोर-शराबा करने पर पाबन्दी लगी हुई थी,जिसे अब हटा दिया गया है।
छी छी, ऐसी पाबन्दी तो हमारे यहाँ संसद -विधानसभा में शोर मचाने पर भी नहीं ! जबकि वहां बड़ों के वोट से "बड़े" ही जाते हैं।              

Thursday, March 5, 2015

प्रेम-संसर्ग और महज़ संसर्ग

प्रेम-संसर्ग में दो लोग परस्पर आकर्षण की अगली कड़ी के रूप में सहबद्ध हो जाते हैं। महज़ संसर्ग में परस्पर सहबद्ध हुए लोग सहबद्धता के पूर्व या पश्चात आकर्षण के शिकार नहीं होते। यद्यपि इस मामले में भी पश्च आकर्षण हो सकता है। अथवा एकतरफा पूर्व आकर्षण हो सकता है। रोचक बात ये है कि प्रेम-संसर्ग में भी पश्च विकर्षण या उदासीनता हो सकती है।
उपर्युक्त पंक्तियों का अभिप्राय केवल आपको ये बताना है कि प्रेम और यौनाचार दो अलग-अलग बातें हैं।
संसर्ग दोनों स्थितियों में होता है किन्तु एक स्थिति में ये वृद्धिमान होता है, और दूसरी स्थिति में ये विलोमानुपाती हो सकता है।
इन दोनों स्थितियों को हम स्वयं अपने ही स्वप्न-संकेतों से विश्लेषित कर सकते हैं। अर्थात जब हम निकट भविष्य में संसर्ग जीने वाले होते हैं, तो हमें गहरी नींद के सपने कई जानकारियां दे देते हैं। इसमें एकमात्र शर्त ये है कि हमारी नींद स्वाभाविक,बिना किसी दवा या ड्रग के हो। साथ ही हमारे सपने पेट की खराबी, थकान, गहरे अवसाद के कारण बाह्य आवेगों से घनीभूत न हों।                   

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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