Monday, October 20, 2014

महिमा-स्पर्धा

महाकवि केशव ने 'अंगद-रावण संवाद' लिख कर अंगद के मुंह से राम की महिमा का जो गुणगान किया, वह अप्रतिम है।  "सिंधु तर्यो उनकौ वनरा तुमपे धनु-रेख गई न तरी" में अंगद ने रावण को बताया कि राम का तो एक बन्दर भी  समुद्र लाँघ गया, और तुमसे लक्ष्मण रेखा तक नहीं लांघी गई।
लेकिन आज अगर महाकवि होते तो वे ये देख कर चकित हो जाते कि  अब राम की महिमा भी अक्षुण्ण नहीं रही, इस युग में उनसे भी अधिक महिमामय विभूतियाँ हैं। आप भी देखिये-

"चौदह बरस जो कटे वन में , तब जाके कहीं ये दिवाली मनी
इत काटि के लौटीं दिवस चौदह बस, भव्य कहीं ये दिवाली मनी
भाई लियौ अरु भावज छोड़ि ,ये फ्रेंड सभी संग लेय पधारीं
एक खड़ाऊँ तजी उन ने,इन नौ सौ खड़ाऊं टाँग सिधारीं
पार करी सरयू उन ने, जब केवट ने जल पाँव पखारे
कोर्ट के द्वार बन्यौ हेलीपेड कहीं तब जा इन पैर उतारे
स्वर्ण कौ देखि गए मृग दौड़ि के, सो भी तिहारे वो हाथ न आयौ
आय छियासठ कोटि करी जुरमाना भर्यो सौ कोटि चुकायो"

[भावार्थ-कवि कहता है कि श्री राम के चौदह वर्ष वनवास में काटने के कारण जैसी दिवाली मनती है, उस से भी भव्य दिवाली जयललिता जी के चौदह दिन कारावास में काटने पर मन रही है। राम तो भाई को साथ ले,भाभी को छोड़ गए, किन्तु जयललिता जी के मित्र-रिश्तेदार भी यात्रा में उनके साथ रहे। राम अपनी एक खड़ाऊँ घर पर छोड़ कर गए थे,सुश्री जयललिता जी साढ़े नौ सौ सैंडिलें घर पर टँगी छोड़ गयीं। राम के तो पैरों की मिट्टी भी धोकर उन्हें सरयू पार करने दी गयी, यहाँ न्यायालय के द्वार तक हेलीपेड बना।राम तो स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ कर भी उसे पकड़ न सके, किन्तु जयललिता जी ने छियासठ करोड़ ज्यादा कमा कर भी सौ करोड़ का दंड चुका दिया।]          
 
      

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