Wednesday, July 2, 2014

"अच्छे दिन !"

एक था।
आपकी मर्ज़ी, आगे कुछ भी जोड़ लीजिये- राजा, आदमी, देश।
उसे अटरम-शटरम , अल्लम-गल्लम खाने की आदत पड़ गई। जो भी दिखा,सब पेट में।
पेट ख़राब होना ही था, हो गया।
अब पेट पकड़ कर एक टांग से नाचने लगा तो एक वैद्य ने कह दिया- "ठण्ड रख, ठीक कर देंगे।"
उसने दंडवत प्रणाम किया और ले आया वैद्य जी को घर।
वैद्य जी ने ज़रा सा पेट दबाया, तो पेट में जमा अपान वायु धड़ाधड़ निकलने लगी।
मोहल्ले में शोर मच गया- "वैद्य जी दुर्गन्ध फैला रहे हैं, वैद्य जी दुर्गन्ध फैला रहे हैं।"
वैद्य ने कहा- कड़ा इलाज होगा, केवल दुर्गन्ध ही नहीं, अभी तो भूखा रखूँगा तुझे। कुछ दिन केवल नीबू पानी, फिर दाल का पानी, फिर कड़ी मेहनत और तब मेहनत की दाल-रोटी। तब जाकर आएंगे तेरे-
रोगी उछल कर बोला- "अच्छे दिन !"   

        

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...