Monday, June 16, 2014

टक्कर महारानी से [शेष भाग]

अब कुदरत की असली परीक्षा थी।  इंसान से उसका कोई गुण छीन लेना आसान काम न था।  पहले तो यही तय करना टेढ़ी खीर थी कि आदमी का कौन सा गुण है और कौन सा दुर्गुण।  उसके गुण-अवगुण एक साथ मिल कर रहते थे।  कहीं गलती से भी प्रकृति माँ उसका कोई गुण छीनने की जगह अवगुण छीन लेती तो पासा उल्टा ही पड़ जाता न, यह तो उसे सजा देने के स्थान पर ईनाम देना हो जाता।
प्रकृति ने एक सुबह झील के किनारे हरे पेड़ों के नीचे सारे पशु-पक्षियों को इकठ्ठा किया और उनसे कहा कि वे इंसानों के कुछ गुण बताएं।
-"इंसान बहुत अच्छा गाता है, सुबह-सुबह उसका आलाप सुन कर मन झूमने लगता है" कोयल ने कहा।
-"रहने दे, रहने दे, मैं घरों के बाहर पेड़ों पर रहती हूँ, आदमी की कर्कश आवाज़ से सवेरे ही मुझे भागना पड़ता है" चिड़िया बोली।
तभी किसी की आवाज़ आई-"आदमी मेहनती बहुत है, खेतों में हल चलाता हुआ ढेरों अन्न उपजा देता है।"
-"लेकिन वह हल चलाते हुए हमारे बिल भी तो तोड़ देता है" चूहा मायूसी से बोला।
-"आदमी का सबसे बड़ा गुण तो ये है कि वह प्रकृति का मुकाबला करना जानता है।जब प्रकृति गर्मी में आग बरसाती है तो वह आराम से कूलर-पंखे चला कर पड़ा रहता है, कुदरत पानी बरसाए तो वह छतरी तान कर बाहर निकल आता है, ज़रा सर्दी पड़ी कि बैठा अलाव तपता है और गुनगुनाता है, बाढ़ भी आये तो नावों में बैठ कर तैरता घूमता है।" भालू बोला।
यह सुनते ही प्रकृति माँ को चक्कर आने लगे।  उसने सोचा- जो मनुष्य मुझसे टक्कर लेने की हिम्मत रखता है, उसका कोई गुण छीन कर मैं खतरा मोल क्यों लूँ ?
कुदरत ने सभा बर्ख़ास्त की और सभी को अपने-अपने काम पर जाने को कहा।         
   
    

2 comments:

  1. सुंदर पर अंत कुछ मजेदार नहीं रहा , प्रकृति चाहे तो कुछ भी कर सकती है नहीं जब अपनी पर उतर आती है तो मानव कुछ नहीं कर पाता आयेदिन होने वाले हादसे एके प्रत्यक्ष गवाह हैं

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...