Tuesday, April 29, 2014

लोकतंत्र इसलिए पांच साल में करवट बदलता है?

एक शराब खाने में कुछ विद्यार्थी घुस गए. वे सभी शोध छात्र थे और किसी न किसी मुद्दे को लेकर अनुसन्धान कर रहे थे. वे जानते थे कि  वहां बैठे लोग उनके इस काम को पसंद नहीं करेंगे, फिर भी वे अपने बैग से डायरी और पैन निकाल कर वहां बैठे ग्राहकों से चंद सवाल करने में जुट गए.एक सवाल प्रायः सभी से पूछा गया- "आप क्यों पीते हैं?"
सवाल एक था, किन्तु जवाब अलग-अलग मिले-
-"शराब पीकर मैं थोड़ी देर के लिए वही हो जाता हूँ, जो मैं हूँ "
-"शराब पीकर मुझे लगता है कि चलो कुछ समय के लिए तो मैं बदल गया "
-"शराब मुझे उसकी याद दिलाती है जो मैंने खो दिया"
-"शराब उसे भुला देती है जो अब मेरा नहीं है "
-"शराब मेरी थकान उतार देती है"
-"शराब मेरा नशा उतार देती है"
-"शराब पीते हुए मुझे लगता है कि ग़ालिब, मीर , बच्चन, खैय्याम सब मेरी ही बात कर रहे हैं "
विद्यार्थियों ने निष्कर्ष निकाला कि हमारा संविधान हर पांच साल बाद सत्ता- नवीसों को चुनाव लड़ने के लिए इसीलिए भेजता है कि "चुनाव" भी एक तरह का नशा है, जो लोकतंत्र की ओवरहॉलिंग कर देता है.      

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