Tuesday, December 3, 2013

कितनी दूर अब दिल्ली?

आज दिल्ली में मतदान हो रहा है। इस बार एक विशेष बात इस चुनाव से जुड़ गई है।  अक्सर कहा जाता है कि पढ़ाई-लिखाई अधिकतर समस्याओं का हल है, इसलिए शिक्षा का प्रसार होने से हमारी समस्याएं सुलझती हैं।  पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक उच्च शिक्षित मेधावी व्यक्ति ने केवल बुद्धि और विचार को आधार बना कर चुनावी माहौल में कदम रखा है।  यह बात एक ऐसे राज्य और शहर की  है जो केवल उच्च शिक्षित ही नहीं, बल्कि देश की  राजधानी भी है।
लगता है कि आज बुद्धि और विचार राजनीति के अखाड़े में फरियादी हैं। देखना है कि भ्रष्टाचार और मदांध सत्ता के बीच बौद्धिक और वैचारिक प्रयास कहाँ ठहरते हैं?
कहा जाता है कि दिल्ली हमेशा से सुविधाजीवी और अहंकारी रही है, इसे देश से लेना ही आता है, कुछ देना नहीं! आज इस बात का भी फैसला होना है कि दिल्ली "सुधार" को किताबी बात समझती है या सुधरना भी चाहती है।   

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...