Saturday, November 30, 2013

सबसे बड़ा खलनायक

राजस्थान में आज विधानसभा के लिए वोट पड़ रहे हैं। पार्टियां,प्रत्याशी, पैसा और पॉवर अपने चरम पर हैं।  "कथनी और करनी" जैसे मुहावरे नई पीढ़ी बिना पढ़े सीख रही है।
निर्वाचन आयोग ने कहा है कि प्रत्याशी सीमा से ज्यादा खर्च न करें।  निर्वाचन आयोग का नोटिस घर-घर जाकर नहीं पढ़वाया जा सकता।  ये ज़िम्मेदारी मीडिया की  है कि इस बारे में लोगों को सही और सटीक जानकारी दे, और ऐसे फैसलों पर अनुवर्तन करने में आयोग की  सहायता करे।  लेकिन हो उल्टा रहा है। मीडिया कई बिल्लियों के बीच बन्दर की  भूमिका में है।  लोगों को सही बात समझाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।  वह तो खुद अनाप-शनाप, उल्टे-सीधे, परस्पर विरोधाभासी विज्ञापन सभी के लिए छाप कर सबकी जेब से पैसा बटोरने में लगा है।
सेठों के हाथों में खेलता मीडिया बड़े-बड़े पैकेज पार्टियों से लेकर अंतिम समय तक उनके उम्मीदवारों की झूँठी आरती गाने में लगा है, और अरबों रूपये के इन विज्ञापनों की कम्बाइंड रसीद देकर प्रत्याशियों को बचाने और चुनाव आयोग की  आँखों में धूल झौंकने का काम कर रहा है।
उस पर तुर्रा यह, कि मीडिया "पेड न्यूज़" न छापने का अपना खुद का छोटा सा विज्ञापन भी साथ में छाप कर जनता के जले पर नमक छिड़कने और समाज की  बौद्धिकता पर घिनौना पलीता लगाने का काम कर रहा है।
लगता है कि मीडिया आज न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की  निगरानी छोड़, खुद सबसे पहले सड़ गया।         

2 comments:

  1. मीडिया को अपने भूमिका निभानी चाहिए

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  2. Media full page "vigyapan" chhap raha hai ki A or B ko do-tihaai bahumat mila, [ That too before voting]

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...