Monday, July 8, 2013

बरसात,बन्दर और बंद कमरा

ये अभी घटी ताज़ा बात है। ये सच भी है। आज दिनभर से बादल थे। शाम को जोर से बारिश आने लगी। शाम की बारिश कोई ज्यादा खुशनुमा नहीं होती। शाम को भी अगर आप घर के भीतर ही रहें तो दिन गुजरने का अहसास मंद सा पड़ जाता है।
मैं कमरे से बारिश देख रहा था। तभी मुझे बालकनी में एक बन्दर बैठा हुआ दिखाई दिया। वह भी कुछ भीगा हुआ था, और तेज़ बारिश को टकटकी लगाए देख रहा था। मैं उस बन्दर को बहुत ध्यान से देख रहा था। क्या आप बता सकते हैं कि  मैं बन्दर को देखते हुए क्या सोच रहा था ?
बन्दर हमारे पूर्वज हैं। हम पहले बन्दर थे, फिर रफ्ता-रफ्ता इंसान बन गए। अगर ये बन्दर भी कभी इंसान बन जाए, और एक दिन बैठ कर अपने ब्लॉग पर इस शाम, बारिश और मेरा ज़िक्र करे तो कितना मज़ा आये ?
बन्दर ये ज़रूर लिखेगा कि  मैं बंद कमरे में बैठा भी बारिश से खीज,और बन्दर से डर रहा था, जबकि बन्दर खुले में भी खुद को सुरक्षित समझते हुए बारिश का आनंद ले रहा था।
सच में पशु-पक्षी बिना ताम-झाम के भी कितने इत्मीनान से जी लेते हैं।बन्दर के पास कोई मेडिकल बीमा नहीं था, फिर भी वह भीग लिया। मेरे पास था, मेरे भीग कर बीमार पड़ने का खर्च सरकार दे देती, फिरभी मैंने बौछार को बाहर ही रोकने के लिए तुरंत खिड़की बंद कर दी।
बन्दर क्यों इंसान बने, हम क्यों न बन्दर बन जाएँ?   

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...