Tuesday, April 30, 2013

सात रंग के सपने

सात दोस्त थे। जब बड़े हुए तो एकदिन अपने गुरूजी के पास जाकर बोले- "सर, अब हम सब अठारह साल के हो गए हैं, हमें अपनी सरकार चुनने का हक़ भी मिल गया है। सारी पार्टियों के लोग वोट मांगने भी आते हैं। आप हमारा मार्गदर्शन कीजिये, कि हम किसे चुनें?
अनुभवी गुरु ने एक-एक दोने में एक-एक लड्डू रख कर सबको दिया और कहा- " ये प्रसाद है, इसे लेजाओ, पर इसे कल सुबह खाना, सुबह तक तुम्हें यह संकेत भी मिल जाएगा कि तुम्हें किसे चुनना है।" सभी  मित्र चले आये।
अगली सुबह पहले मित्र ने देखा, कि  प्रसाद के लड्डू में चींटियाँ लगी हुई हैं, उसने वह उठा कर उन्हीं के खाने के लिए नाली में डाल दिया।
दूसरे  दोस्त को भी लड्डू वैसे ही मिला। लेकिन उसने झटपट उसपर से चींटियों को झाड़ा और लड्डू खा लिया।
तीसरे के घर शायद किसी ने उसे ढक दिया था, अतः चींटियाँ तो नहीं लगी थीं,पर ढकने वाले ने आधा लड्डू खा लिया था, लड़के ने उसे जूठा समझ कर फेंक दिया।
चौथे मित्र के यहाँ भी यही हुआ, पर उसने बाकी बचा आधा लड्डू खा लिया।
पांचवां मित्र जब सुबह उठा, तो उसने देखा कि  घर के सब लोग मिलकर लड्डू को थोड़ा -थोड़ा  खा रहे हैं, उसने भी हिस्सा बटा लिया।
छठे दोस्त को लड्डू वहां से गायब मिला। उसने सोचा- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, और प्रसाद की बात भूल गया।
सातवें दोस्त की जब आँख खुली तो उसने गुरूजी को अपने घर के बाहर खड़े पाया। वे कह रहे थे कि  रात को उनके घर से सारे लड्डू चोरी हो गए, और वे चोर के पैरों के निशानों का पीछा करते-करते यहाँ तक आये हैं।
[कल हम जानेंगे कि  किस मित्र ने चुनाव में किसे चुना]

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...