Thursday, February 14, 2013

नीयत-मापी यन्त्र

क्या लालच को मापा जा सकता है? आमतौर पर हम कह देते हैं कि लालच की कोई सीमा नहीं है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि  यह दुनिया एक आदमी के लालच की पूर्ति करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। यह कथन दुनिया को अंडर-एस्टिमेट करना नहीं है, बल्कि लालच को सही एस्टिमेट करने का प्रयास करना है।
कुछ समय से सुनने में आ रहा है कि  कुश्ती के खेल को ओलिम्पिक  से अलग करने पर विचार हो रहा है। इस सूचना से सभी जगह हलचल शुरू हो गई है। कुश्ती से जुड़े खिलाड़ी, दर्शक, अधिकारी और शुभचिंतक इसे मायूसी से देख रहे हैं। कुछ सकारात्मक तरीके से सोचने वाले लोग यह भी कह रहे हैं, कि  अमेरिका और रशिया जैसे कुश्ती में दबदबा रखने वाले देश आसानी से इस खेल को विलुप्त नहीं होने देंगे। वैसे यह कोई अनहोनी भी नहीं है, क्योंकि प्रतियोगिताओं में नए खेलों का समावेश करने के लिए कुछ पुरानों को विदाई देना  जरूरी हो सकता  है। कुश्ती को अब जीवन में वैसे भी हाशिये पर ला दिया गया है।
यहाँ, महत्वपूर्ण यही है कि  ऐसा निर्णय किस नीयत से लिया जा रहा है। खेलों का यह "परिसीमन" किसी वांछित खेल को लाने की सायास कोशिश नहीं होनी चाहिए।
लालच से इसे केवल इसी रूप में जोड़ा जा सकता है कि किसी भी देश के लिए पदकों को पाने की प्रत्याशा खेल-निर्णयों से दूर रहे,क्योंकि नीयत-मापी यन्त्र फिलहाल हमारे पास नहीं है।     

2 comments:

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 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...