Monday, February 11, 2013

जापान और चाइना क्या सोच रहे हैं?

एक शोध ने यह तथ्य निकाले हैं, कि  चाइना सख्ती से अपनी जनसंख्या के नियंत्रण के प्रति चिंतित है। शायद यह पृथ्वी पर जीवन का ऐसा पहला क्षेत्र है, जहाँ दुनिया का नंबर एक देश अपनी उपलब्धि पर हर्षित नहीं है, और इस से निजात पाना चाहता है। जापान भी संख्या नियंत्रण को पूरी संजीदगी से ले रहा है। नतीजा यह है कि  वहां बच्चों और युवाओं की संख्या इस समय वयस्कों या प्रौढ़ों की तुलना में कहीं कम है। लेकिन वहां यह सब किसी विकास के उन्माद में नहीं, बल्कि सहज समझदारी के तहत हो रहा है।
यहाँ एक पेचीदा जिज्ञासा उत्पन्न होती है, कि धरती पर एक उत्पाद के रूप में हम "मनुष्य" को कैसा समझते हैं? यदि इंसान धरती की सबसे चमत्कारिक और महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जैसा कि  कई देशों में कई शोधार्थियों का निष्कर्ष है, तो इसकी संख्या का आधिक्य किसी देश के लिए अवांछनीय कैसे हो सकता है? यदि होता है, तो हम "मौत पर रोना" जैसी प्रथाओं पर पुनर्विचार क्यों नहीं करते?
क्रूरता के लिए क्षमा करें। इस आलेख का प्रयोजन मनुष्य का निरादर करना नहीं है। न ही अन्य देशों की नीति  पर कोई कटाक्ष करना इसका उद्देश्य है, केवल "मनुष्यता" के बेहतर उपयोग का आह्वान ही इस जिज्ञासा में निहित है। 

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...