Sunday, January 6, 2013

यह कार्य अब युद्ध-स्तर पर ज़रूरी है

दुनिया रहने लायक बनी रहे, यह हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि आप सूचना-तंत्र से जुड़े हुए हैं, तो आपसे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है। आप देख ही सकते हैं कि  कुछ लोग दुनिया को न रह पाने लायक जगह बनाने पर आमादा हैं। ये जितने क्रूर हैं, उससे कहीं ज़्यादा मूर्ख हैं। ये नहीं जानते कि  किसी पेड़ पर चढ़ कर उसकी जड़ काटने की कोशिश का अंजाम क्या होता है?
ऐसे लोग यदि गरीब हों तो उन्हें अमीर लोग एक मिनट में रोक सकते हैं। यदि वे निरक्षर हों, तो उनकी शिक्षा का माकूल प्रबंध किया जा सकता है। पर वे इनमें से कोई नहीं हैं। वे तो भूखे लोग हैं।
आप सोचेंगे, कि  तब सरकारें या समाज उनकी रोटी का बंदोबस्त क्यों नहीं कर देते?
ये मुश्किल है, क्योंकि वे रोटी के भूखे नहीं हैं। उनकी भूख तो दुनिया बनने के पहले ही दिन से उनके शरीरों में डाल दी गई है।
तो फिर दुनिया अब तक रहने लायक कैसे बनी रही?
इसलिए, क्योंकि कुदरत ने आदम और हव्वा से कहा कि  दोनों एक दूसरे का हाथ कस कर पकड़े रहना, सब शुभ और मंगलकारी होगा। वे दोनों साथ साथ रहे- "कभी आदम को पिता की आज्ञा मान कर वन में जाना पड़ा तो हव्वा भी जग की तमाम सुविधाएं छोड़ कर उसके साथ गई, आदम और हव्वा विवाह न कर सके तो उन्होंने कुञ्ज-गलियों में मिल कर रास रचाई, आदम जगत छोड़ कर हिमालय की बर्फानी दुनिया में जा बैठा तो हव्वा ने भी अपना स्वर्ग उसी पर्वत शिखर को बना लिया, आदम क्षीरसागर में जा बैठा तो हव्वा उसके इर्द-गिर्द बनी रही, आदम ने युद्ध की रणभूमि में प्राण निसार दिए तो हव्वा जौहर के ज्वाला- रथ पर बैठ कर साथ गई, आदम को यमराज अपने साथ ले जाने लगा तो हव्वा उस से तर्क कर आदम को वापस दुनिया में खींच लाई, आदम पत्थर का हुआ तो हव्वा एक हाथ में उसे और दूसरे  में एकतारा लिए जीवनभर गली-गली गाती रही।"
लेकिन अब आदम पहले तो हव्वा को दुनिया में आने से रोक रहा है, यदि वह आ जाए तो उस पर बुरी नज़र डाल रहा है। इसलिए ज़रूरी है कि  आदम खुद अपने से युद्ध करे, और बताये, कि आखिर उसकी मंशा क्या है?
 

3 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने , हमारी जंग सिर्फ ६ गुनाहगारों या प्रशासन के खिलाफ नहीं है , असल जंग खुद से है , अपनी सोच से है |
    आदम और हौव्वा का चित्रण बहुत सुन्दर बन पड़ा है |

    सादर

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