Thursday, November 8, 2012

ध्येय के लिए निकलने से ज्यादा चुनौती भरा है, ध्येय हासिल करके लौटना

नहीं, यह सही नहीं है।
ज्यादा चुनौती तो जीवन के लिए कोई ध्येय चुन लेने में ही है। जब हम अपने लिए कोई पथरीला रास्ता चुनते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में अपना श्रेष्ठतम देने की लालसा का ताप जगता है। जब हम लक्ष्य को पा लेते हैं, तब तो संतोष की अंगड़ाई  लेने का वक़्त होता है। यह समय महान नहीं होता।
हाँ, यह समय उन लोगों के लिए महान होता है, जिन्हें हमने अपना लक्ष्य अर्जित करने के संवेग में भुला दिया था। वे खुश होते हैं।
राम जब घर लौटते हैं, तब वे न तो दिया जलाते हैं, न मीठा ही खाते हैं, और न उनका मन पटाखे फोड़ने का होता है। दीवाली तो हम मनाते हैं, जिनके राम लौट आये।हमारे लिए यही समय उत्तम है।
दीपावली के उत्सवी सप्ताह के आगाज़ पर शुभकामनाएं!

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