Saturday, November 3, 2012

सात राजकुमार [तीन]

तीसरा युवक बताने लगा- मैं एक मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ देर बैठ कर आराम कर रहा था कि  मेरा ध्यान कुछ दूरी पर बैठे कोढ़ियों पर गया। मंदिर का पुजारी उन्हें मंदिर के पास न आने देता, और दर्शनार्थी घृणा के कारण उनके पास न जाते। लोग मंदिर की सीढ़ियों से, दूर से ही प्रसाद और खाने का दूसरा सामान कोढियों की ओर फेंकते, किन्तु जब तक कोढ़ी घिसटते हुए उस तक पहुंचें, बीच में ही कुछ कुत्ते उसे झपट लेते। मैंने वहीँ रह जाने का फैसला किया, ताकि भोजन और प्रसाद कोढ़ियों के नज़दीक जा कर उन्हें दे सकूं। सात दिन बाद आते समय मंदिर के पुजारी ने मुझे कुछ पैसे दिए।
चौथा लड़का बोला- मैं रात को एक जगह सो रहा था, कि  खटपट की आवाज़ से नींद खुली। देखा तो होश उड़ गए। सामने एक दुकान में चोर ताला तोड़ कर चोरी कर रहे थे।अपना भेद खुला जान कर उन्होंने मुझे भी पकड़ लिया, और अपने साथ ले गए। सप्ताह भर उनके साथ रहा, फिर मौका देख कर भाग आया। उनके साथ रोज़ चोरी के लिए जाता, तो मुझे हिस्सा भी मिलता, उसने नोटों की गड्डी दिखाते हुए कहा।
पांचवे साथी ने सब को खूब हंसाया, बोला-एक सुबह तालाब में नहा रहा था, कि  एक गाड़ी आकर रुकी। नाचने-गाने वाले लोग थे, मुझे भी साथ ले चले। हम खूब सज-धज कर जगह-जगह नाटक-ड्रामा करते। मेरा नाच देख कर मालिक इतना खुश हुआ कि  आने ही न देता था, मुश्किल से जान छुड़ाई।तीन बार तो मैं लड़की बन कर नाचा।
छठे राजकुमार ने बताया- एक दिन मेरी हलकी तबियत खराब हुई तो मैं कोई डाक्टर वैद्य ढूँढने लगा। मुझे एक ऐसा वैद्य मिला जिसके पास ढेरों जड़ी-बूटियाँ तो थीं, पर उसका सहायक उसे छोड़ कर चला गया था। वैद्य बातें बनाना तो खूब जानता था, पर उस से काम रत्ती भर भी नहीं होता।मैं उसके पास रह गया। उसकी जड़ी-बूटियों से दवा-दारु निकालता, और बदले में वो भी मुझे मजदूरी देता।
सातवां लड़का भी अपनी आप-बीती सुनाने लगा- अब तुम लोगों को तो मालूम ही है कि  मुझे तो बस गाना आता है। आते-जाते लोगों को इकठ्ठा करके कोई गीत छेड़ देता। हर-एक कुछ न कुछ देकर ही जाता।
सबकी राम-कहानी जान कर सब बहुत खुश हुए, और सोचने लगे कि  चलो हम सब किसी तरह अपना-अपना पेट तो भर ही सकते हैं।   

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