Wednesday, October 31, 2012

गाँधी हारे

समय बहुआयामी होता है। यह एक ही घड़ी  में दो लोगों से अलग-अलग व्यवहार कर सकता है।
यह किस्सा पिछली सदी की पोटली से है। भारत में पिछली शताब्दी में दो ऐसे पिता हुए थे,जो बहुचर्चित तो थे ही, सार्वजानिक जीवन की हस्तियाँ भी थे। बस, अन्तर केवल इतना था कि  एक का पुत्र उसे पिता कहता घूम रहा था, पर पिता पुत्र को पुत्र कहने में संकोच कर रहा था, दूसरे को सारा देश पिता कह रहा था, पर वह इस संबोधन को सुन पाने के लिए जीवित ही नहीं रहा था।
वैज्ञानिक और प्रशासनिक उपलब्धियों से लबालब नई सदी आई। दोनों पिताओं की समय ने अपने-अपने तरीके से परीक्षा ली। जो पिता अपने पितृत्व को छिपाता फिर रहा था उसे समय ने "पिता" घोषित किया। जिसके पितृत्व पर सारा देश नाज़ करता था, समय ने उसे देश का पिता मानने से इनकार कर दिया।
आरटीआई के तहत एक बालिका के प्रश्न पर गृह मंत्रालय ने यह कीमती जानकारी दी कि  महात्मा गांधी को कभी राष्ट्र-पिता घोषित नहीं किया गया।

1 comment:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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