Thursday, October 18, 2012

पेड़

एक रास्ते के किनारे एक पेड़ खड़ा था। उसे यूँही खड़े-खड़े बरसों बीत गए थे। बूढ़ा  भी हो चला था। अब तने और शाखों में झुर्रियां पड़  गई थीं। जड़ों में ऐंठन और खोखलापन आ गया था। पत्ते या तो आते ही नहीं, या फिर पीले, मुरझाये हुए आते। खाद और पानी की कौन कहे, अपने फल-फूल तक का अता-पता न रहता।  अव्वल तो आते ही नहीं, और आते तो अपनी जान बचाने को चुपचाप खुद ही उदरस्थ कर लेता। आस-पास के लोग भी सोचते, अब गिरे, तब गिरे।
एक दिन कोई लकड़हारा कुल्हाड़ी लेकर आ ही पहुंचा। पेड़ को जैसे सांप सूंघ गया। जीने की इच्छा बलवती हो उठी। लकड़हारे से बोला- बेटा ,मैंने अपना हाथ काट कर तुझे लकड़ी दी, तू उसी लकड़ी में लोहा फसा कर मेरी जान लेने आ गया?
लकड़हारा बोला-न तुझमें फल, न फूल, न छाया, अगर अब भी तुझे न काटा तो तेरे हाथ-पैर खोखले होकर लकड़ी देने के भी न रहेंगे! बेहतर यही होगा कि  तू अपनी बलि देकर कुछ पुण्य का काम कर। लकड़ी दे, और रास्ते से हमेशा के लिए हट जा।
पेड़ बोला- जरा तो सोच, मेरे कोटरों में अब भी दर्ज़नों पखेरू बसते हैं, क्यों उन्हें बेघर करता है?
लकड़हारा न पसीजा, बोला,गए-बीते बूढ़े को इतनी जगह घेर कर पड़े रहने का कोई हक़ नहीं है,तू रास्ते से हटेगा तो तेरी जगह नया बिरवा आएगा। वो फल-फूल भी देगा और छाया भी।
पेड़ मायूस होकर बोला- पर तू  नया बिरवा लाएगा कहाँ से?
लकड़हारा बोला- तेरे बीज से!
पेड़ ख़ुशी से झूम उठा। इससे पहले कि  लकड़हारे की कुल्हाड़ी चले, पेड़ खुद ही भरभरा कर गिर पड़ा।     

2 comments:

  1. काल का पहिया, घूमे भैया ...

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  2. Yahi to khushi ki baat hai, Bharosa rahta hai ki kaal ke pahiye ke ghoomne se aap-ham kabhi to aamne-saamne honge! Dhanyawaad !

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