Friday, October 5, 2012

अमन-चैन और शांति के खतरे

   सारे शरीरों के संवेग एक से नहीं होते। कुछ बदन ऐसे होते हैं, जिनमें तूफ़ान ज्यादा उठते हैं।ठीक वैसे ही, जैसे सभी फूलों में खुशबू एक सी नहीं होती। लेकिन विभिन्न कारणों से समाज में या बगीचों में रहना सबको एक साथ पड़ता है। बस, यहीं से समस्याएं शुरू होती हैं।
   अनादि  काल से उद्दाम शारीरिक तरंगों वाले नौजवानों को युद्धों में काम लिया जाता रहा। उनकी मानसिकता में शत्रु पर भूखे भेड़िये  की तरह टूट पड़ना होता था। अब हमारे देश में युद्ध लगभग  बंद ही हो गए। लम्बे समय से सेनाओं के पास उस दिन के लिए 'तैयार' रहने का दायित्व है, जिस दिन कुछ होगा। सेनाओं को देश के भीतर ही  कई जिम्मेदारियां संभालनी पड़ रही हैं।
   एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो सेना-पुलिस की नौकरी की आस लगाए, जीवन काट रहे हैं। बहुत से बेकार भी हैं, और बहुत से हताशा में डूबे विकृत मानसिकताओं को भी जी रहे हैं। दूसरी ओर समाज लड़कियों की तुलना में लड़कों की संख्या को रोज़ बढ़ा रहा है।
   ऐसे में हमारे सामने एक ही विकल्प है- "ॐ शांति ॐ !"

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