Friday, September 28, 2012

कल अच्छा लगा, भगत सिंह पर चढ़ाये गए गुलाबों से बना गुलकंद

   कल शहीद भगत सिंह के एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम में बोलते हुए दो तीन दिलचस्प अनुभव हुए। सबसे अच्छा तो यह देख कर लगा कि  हमारे युवा उन्हें दिल से अपना हीरो मानते हैं। मंच से श्रोताओं की ओर  देखते हुए मुझे यह अद्भुत लग रहा था कि  युवा पीढ़ी का उल्लास बिना किसी प्रयास के, उनके अपने भीतर से आ रहा था। निश्चित ही भगत सिंह के 'प्रोमो' के लिए कोई पहले वहां आकर नहीं गया था। जो था, सब स्वतःस्फूर्त था। शायद यह भाव उनके भीतर आज के 'भक्त सिहों' के प्रति अवज्ञा-उपेक्षा से जन्मा था।
   एक श्रोता कह रहे थे कि  मैं जब भी लोगों से शहीद का जन्मदिन मनाने की पेशकश  करता था, लोग कहते थे कि  तू हमसे दो-चार सौ रूपये लेले, पर करना क्या है, यह तू ही सोच। फिर वे लोग कहते कि  इस से हमें फायदा क्या होगा? लोगों की इस भावना से मुझे एक आइडिया मिला, मैंने सोचा कि  ये दो-चार सौ रूपये आसानी से दे देते हैं, और इन्हें बाद में "फायदा" मिलने की उम्मीद रहती है। तो क्यों न इनके लिए 'इन्श्योरेन्स' की कोई स्कीम शुरू कर दी जाय।
   "राष्ट्रीयता" का अर्थ लोगों को सिखाने वाले उस महान शहीद को मन से नमन !

4 comments:


  1. सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर आप सादर आमंत्रित हैं.

    ReplyDelete
  2. Dhanywad, aaj aapki rachnaon ka aanand loonga!

    ReplyDelete
  3. इनके लिए 'इन्श्योरेन्स' की कोई स्कीम शुरू कर दी जाय।

    मूल मुद्दे से हटकर

    ReplyDelete
  4. Aap sahi kah rahe hain, par mujhe to ye lagta hai ki beema kisi ko surakshtit rakhne ke liye kiya jata hai, aise "khud ke dushmanon" ko kaun surakshit rakh paayega!

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...