Monday, August 6, 2012

जैसे पतझड़ में पेड़ से पत्ते गिरते हैं

जब पेड़ से पत्तों के गिरने का समय आ जाता है तो पत्ते गिरते हैं और कोई पत्ते गिरने का कारण किसी से नहीं पूछता.
   बड़े ,बच्चों को यह कह कर नहीं डपटते कि ज़रूर तुमने पेड़ों को खींचा होगा इसी से पत्ते झड़  रहे हैं .माली पर यह लांछन नहीं लगता कि तुमने ज़रूर गलत खाद दी होगी , क्योंकि सब जानते हैं कि यह मौसम है ही पतझड़ का .
   इसी तरह हर पांच साल बाद तरह -तरह के मुखार्विन्दों से बयान टपकने का मौसम भी आता है . भान्ति भान्ति के लोक नायक लोक का पुनः सामना करने से पहले अलग -अलग आलाप लेते हैं .इन सुरों से किसी को पता नहीं चलता कि ऊँट किस करवट बैठेगा, हाँ , यह ज़रूर पता चलता है कि ऊँट किसी भी करवट बैठे , ये सब ज़रूर उसी की बगल में आ बैठेंगे और सत्ता- आरती गायेंगे. गज़ब के गवय्ये .    

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