Wednesday, August 15, 2012

इतिहास बदलने की अनुमति है [पांच]

पहरेदार  - हाँ- हाँ, जाओ, तुम्हें न्याय मांगना है तो कोर्ट-कचहरी में जाओ, यह तो इतिहास की दीवार है, यह तो पवित्र स्थान है।
लड़का- क्या कहा ? यह इतिहास की दीवार है?
पहरेदार  - हाँ
लड़का- अरे, यह तो और भी अच्छा है। हमें इतिहास से भी शिकायत है।
जिजीविषा - अच्छा-अच्छा तुम पहले करुणा  को बोलने दो। बोलो करुणा !
करुणा  - मैं करुणा  हूँ, मेरा मन बहुत करुण  है। मुझसे किसी का दुःख बिलकुल नहीं देखा जाता। जब से मैंने सुना है कि  एक 'माँ ' ने एक राजकुमार को बचाने के लिए अपने खुद के बेटे की कुर्बानी देदी, मैं एक दिन भी सो नहीं सकी हूँ। मेरे सपनों में रह-रह कर वही बालक आता है ...
लड़का - सो नहीं सकी तो सपने कैसे आते हैं ?
जिजीविषा - चुप रहो, उसे बोलने दो।
करुणा  - वह बालक, बेचारा अभागा, जिसे खुद उसकी माँ ने मरने के लिए छोड़ दिया। आखिर उस माँ की ममता को क्या हुआ ?
[बच्चों में सुगबुगाहट होती है। फिर नारों की आवाज़ आती है- हम सब एक हैं, अपना हक़ लेकर रहेंगे, ममता बचाओ मंच जिंदाबाद !]
जिजीविषा - शांत, शांत, बच्चो शांति रखो,जिसे बोलना है वह खड़ा होकर बोले। और एक साथ नहीं, एक-एक करके बोलो। हाँ हाँ बोलो, पहले अपना नाम बताओ,
[एक लड़का खड़ा होता है ]
लड़का - मेरा नाम विस्मय है।
जिजीविषा - कहो, क्या कहना चाहते हो ?
विस्मय - मुझे तो इस बात पर आश्चर्य है कि  क्या कोई माँ ऐसा भी कर सकती है ? हमारे इतिहास के अध्यापक  ने बताया कि  पन्ना नाम की एक औरत ने एक राजा के लड़के को बचाने के लिए अपने खुद के पुत्र चन्दन की बलि चढ़ा दी। और इस से भी बड़ा आश्चर्य यह है कि  उस महिला को महान मान कर आज तक उसके गुण गाये जा रहे हैं, और बेचारे चन्दन को कोई याद नहीं करता।
[बच्चों में कोलाहल जैसा वार्तालाप शुरू हो जाता है। ] 

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...