Friday, June 22, 2012

अर्थों के अनर्थ करने वाले

कौन कहता है कि  खेत
अब नहीं उगाते पौष्टिक अन्न
कि  जिसे खाकर पैदा हो वास्तविक आदमी।
खेत तो अब भी उगाते हैं अन्न
हाँ, अगर वह पौष्टिक न निकले
तो ज़रूरी है तहकीकात
उन इल्लियों व कीटों की नहीं
जो पनप जाते हैं खेतों की भुरभुरी मिट्टी  में
बल्कि उनकी,
जो पनप जाते  हैं
चमचमाते शहरों के जगमगाते बंगलों में !

तहकीकात उनकी ज़रूरी नहीं
जो हल-बैल या ट्रेक्टर लेकर
आंधी-पानी-धूप  में घूमते  हैं खुले आसमान तले
तहकीकात उनकी करो जो
कुर्सी के खेत में वोटों की खाद देकर
मौन रख लेते हैं और
खुश होते हैं दिन गिन-गिन कर 
अपनी सल्तनतों के।

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