Tuesday, June 19, 2012

मुद्दा

     जैसे ही सुबह हुई बाग़ में से ओस की बूँदें वापस आसमान की ओर  लौटने लगीं। एक क्यारी में फूल खिल गए। एक फूल ने दूसरे  की ओर  देखा, और बोला- "आज तेरे चेहरे पर चमक नहीं है?"
     दूसरे फूल को यह बात अपना अपमान लगी। वह लापरवाही से बोला-" यहाँ आइना नहीं है न, इसी से तू जो चाहे बोल ले। आइना होता तो तुझे भी तेरी असलियत  पता चलती।"
     दोनों की नोक-झोंक सुन कर एक कली बोली-" एक नई और खूबसूरत सुबह का स्वागत करने के लिए तुम्हारे पास कोई और तरीका नहीं है?"
     तभी एक भंवरा गुनगुनाता हुआ उधर से निकला, लेकिन वह किसी भी फूल पर बैठा नहीं, मंडराता हुआ गुज़र गया। थोड़ी ही देर में बंगले की मालकिन भी अपने छोटे बच्चे के साथ  घूमती-घूमती उधर आ निकली। वह चिल्ला कर अपने नौकर से बोली- " फूलों को अच्छी तरह धोकर टेबल पर सजाना, आजकल माली कीट-नाशक  बहुत डालने लगा है।"
     उसके चले जाने के बाद,कली फूलों से  फिर से बोल पड़ी-"चुप क्यों हो गए ... बोलो,बोलो ... बात तो तुम मुद्दे की कर रहे थे। "  

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