Friday, April 13, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 37 ]

     उस रात जब किन्ज़ान सोया,तो जिंदगी में पहली बार उसे सपना आया. थकान और देर हो जाने के कारण किन्ज़ान को उस रात नींद भी बहुत गहरी आई. कहते हैं कि नींद जितनी गहरी हो, उसमें देखा गया सपना उतना ही साफ़ दिखाई देता है. 
     किन्ज़ान ने देखा कि देर रात को उस मरी हुई मछली को फेंकने के लिए उसने  अपने हाथ  में उठाया.उसे आभास हो रहा था कि मछली बहुत बुरी तरह से दुर्गन्ध फेंक रही है, इसलिए वह उसे घर की डस्टबिन में नहीं फेंकना चाहता था. वह दरवाज़ा खोल कर चुपचाप बाहर निकला और गली पार करके सड़क के दूसरे किनारे पर बने बड़े कचरा-पात्र की ओर जाने लगा. यह कचरा-पात्र ढका हुआ था, और इसे ज़्यादातर लोग अपने पालतू कुत्तों के मल-मूत्र आदि को फेंकने के लिए प्रयुक्त करते थे. इसमें रासायनिक पदार्थ डाल कर गंध को आगे न फैलने देने की व्यवस्था भी  थी.
     किन्ज़ान ने ढक्कन हटा कर जैसे ही उस मरी हुई मछली को फेंकना चाहा, किन्ज़ान यह देख कर दंग रह गया कि झटके से उछल कर मछली वापस उसके हाथ में आ गयी. उसे जैसे करेंट का सा झटका लगा. उसने अपने हाथ की ओर देखा ही  था कि उसकी चीख निकल गई.उसकी  पूरी हथेली खून से भर गयी. उसने अपने हाथ को गौर से देखा- कहीं चोट का कोई निशान नहीं था, न जाने खून कहाँ से आया था?देना चाहा. इस बार मछली डिब्बे में न गिर कर डिब्बे के दूसरी ओर बाहर गिरी. लेकिन फिर वही हुआ, मछली उछल कर पुनः किऔर खून की मात्रा इतनी थी कि पूरी हथेली लथपथ हो गई. किन्ज़ान ने तुरंत झटक कर मछली को फिर से फेंक न्ज़ान के हाथ में आ गयी. इस बार वह डरा नहीं. उसे अपने घर की चादर के रंग जाने का रहस्य भी समझ में आया. 
     अबकी बार उसने कुछ संभल कर पूरी ताकत से मछली को बहुत दूर घनी घास की ओर  फेंका.किन्ज़ान के युवा हाथों की ताकत इतनी ज़बरदस्त थी कि वह छोटी सी, सूखी, मरी हुई मछली   लगभग  सत्तर फिट की दूरी पर जाकर गिरी. किन्ज़ान को पसीना छूट गया. लेकिन इस पसीने में और इज़ाफा ही हुआ, जब मछली किसी रिफ्लेक्स एक्शन की तरह उसी दूरी और उसी ऊंचाई को लेकर फिर से किन्ज़ान के हाथ में आ फंसी. 
     अब किन्ज़ान डर से कांपने लगा. रात के लगभग दो बजे थे. हार कर किन्ज़ान ने मछली को अपनी जेब के हवाले करना चाहा. अब कोई भयानक या क्रुद्ध प्रतिक्रिया नहीं हुई, बल्कि आहिस्ता से निकल कर मछली फिर से किन्ज़ान के हाथ में ही आ गई. किन्ज़ान ने अपने को थका और बेबस अनुभव किया. वह भारी क़दमों से अपने घर की ओर वापस लौटने लगा. घर आकर उसने दरवाज़ा खोलने के लिए जैसे ही उसे धक्का दिया, किन्ज़ान की नींद खुल गई. वह उठ बैठा. उसने चौंक कर इधर-उधर देखा, उसे सब कुछ ठीक और यथावत पाकर भारी राहत मिली. उसका ध्यान तुरंत अपनी हथेली की ओर गया. वह सामान्य थी, वहां खून का कोई नामोनिशान नहीं था. हाथ में कोई मछली भी नहीं थी. 
     उसे याद आया, कि रात को चादर के रहस्य -मयी रूप से लाल हो जाने के कारण वह ज़मीन पर ही सो गया था. उसने बिस्तर पर नज़र डाली- चादर अपने मूल हल्के रंग में ही थी, और उस पर किसी मरी मछली का कोई निशान तक न था. सुबह होने में काफी देर बाकी थी. किन्ज़ान अपने बिस्तर पर आराम से आ सोया...[ जारी...]      

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