Thursday, April 12, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 36 ]

     किन्ज़ान ने बहुत याद करने की कोशिश की, ऐसा कब हुआ था कि उसने अपने कमरे में यह सुर्ख लाल रंग की चादर बिछाई, पर उसे याद नहीं आया. वह कुछ अनमना सा हो गया. उसकी ज़रा भी इच्छा नहीं हुई कि वह उस तिलिस्मी चादर पर सोए. वह ज़मीन पर एक ओर बैठ गया.
     थोड़ी देर बैठे रहने के बाद उसका ध्यान गया, कमरे की दीवार पर बने एक छोटे से छेद की ओर.उसने देखा कि सुनहरी रंग की बहुत सारी चींटियाँ एक कतार में वहां से निकल कर दीवार पर रेंगती हुई नीचे की ओर आ रही हैं. वह ध्यान से उनकी ओर देखने लगा. चीटियाँ एकदम सीध में और बराबर की दूरी के अंतर से एक दूसरे के पीछे चली आ रही थीं. ऐसा लगता था, मानो चींटियों को कई दिन तक इस तरह एक साथ चलने का प्रशिक्षण दिया गया हो. किन्ज़ान सोचने लगा, सेना में अभ्यास  परेड के समय एक साथ चल पाने के लिए सैनिकों को किस तरह सख्ती से निर्देश देकर प्रशिक्षित किया जाता है. और यह छोटा सा जीव बिना किसी निर्देश, बिना रस्ते के संकेतों के, अपने आप लाइन में चला आ रहा है? 
     किन्ज़ान ने खेल ही खेल में उनका अनुशासन तोड़ने का निश्चय किया. उसने पहले जेब में पड़े एक छोटे से लाइटर से उनकी पंक्ति को तोड़ना चाहा.ऐसा करके वह केवल तीन-चार  चींटियों को तितर-बितर कर सका.लेकिन कुछ दूर जाकर उन चींटियों ने अपना रास्ता फिर ढूंढ लिया. वे फिर अपने दल के साथ उसी तरह चलने लगीं. किन्ज़ान ने देखना चाहा- वे आखिर  जा कहाँ रही हैं? थोड़ी दूर उस कतार का पीछा करते हुए किन्ज़ान को उनके गंतव्य का पता मिल गया. वे उस लाल चादर पर जा रहीं थीं. अब किन्ज़ान की दिलचस्पी यह जानने में थी कि उस चादर  पर ऐसा क्या था, जिस पर वे अनुशासित सैनिक-नुमा जीव  लामबंद होकर धावा बोलने को आतुर थे? 
     और तब किन्ज़ान यह देख पाया कि चादर के एक किनारे पर एक छोटी सी मछली चिपकी हुई है, इमली के आकार की,सुनहरे केसरिया रंग की. मरने के बाद, सिकुड़ी-सिमटी सी. चादर की सलवटों के बीच फंसी, लाचार और बेदम...जब पानी में जीवित हो, तो अपने शरीर से धुआं छोड़ने वाली. अब उसकी निर्जीव देह शायद धुंए की जगह गंध छोड़ रही थी. कमरे की बदबू को किन्ज़ान ने भी अब महसूस किया, जब उसने मृत-मछली अपनी आखों से देख ली. 
     दीवार से रेंग कर आती चींटियों की सेना इसी मछली की गंध के इशारे पर इसकी काया को दुनिया से रुखसत करने की मुहिम पर  आ रही थी. 
     किन्ज़ान के मस्तिष्क में अचानक कुछ कौंधा. तो क्या चादर के रंग बदलने में इस मछली का हाथ हो सकता है? क्या इसकी बेजान लाश में ठीक उसी तरह की  कोई चमत्कारिक प्रक्रिया घट कर चुकी है, जिस तरह इसके जीते- जी इसके शरीर से धुआं उठा करता है? क्या यह अजूबा पिछले दिनों घटी घटनाओं से कोई ताल्लुक रखता है? या यह सामान्य सी वैज्ञानिक प्रक्रिया  है, जो किसी जीव-जंतु की अपनी शारीरिक बनावट से जुड़ी है...[जारी...]        

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