Tuesday, April 10, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 35 ]

     जहाँ किन्ज़ान ने अपनी दुकान लगाईं थी, उस से कुछ ही दूर पर कुछ और लड़कों ने भी तरह-तरह की चीज़ें बेचने के लिए रख छोड़ी थीं. दिन भर एक ही तरह के कारोबार में लगे वे लड़के ख़ाली समय में एक दूसरे से मिलते तो उनमें बातें होतीं और देखते-देखते दोस्ती भी हो जाती.किन्ज़ान की जान-पहचान नज़दीक ही एक पुरानी किताबें बेचने वाले लड़के से हो गई.
     अब अक्सर खाली समय में किन्ज़ान उसके पास जाकर बैठता, और धंधे की बातों के बाद आते-आते पढ़ने के लिए उससे कोई पुरानी किताब भी उठा लाता.
     किन्ज़ान अपने बचपन के दिनों में कभी भी पढ़ने में दिलचस्पी नहीं लेता था. उसका रुझान अब भी हल्के-फुल्के मनोरंजक साहित्य पर ही रहता था. वह पत्रिकाएं उलट-पलट कर देखता, थोड़ा बहुत पढ़ता फिर शाम को वापस लौटा देता.
     यहीं एक दिन किन्ज़ान के हाथ वो किताब लग गई, जिसे एक बार पढ़ना शुरू करके किन्ज़ान उस में खो गया.शायद दो-एक ग्राहक आकर लौट भी गए हों. किन्ज़ान को कुछ पता ही नहीं चला. उस किताब में किन्ज़ान को अपने साथ घटी  हुई घटनाओं के अक्स भी दिखे.किताब कुछ ऐसे लोगों के बारे में थी, जो एक बार मर कर भी वास्तव में मरे नहीं, बल्कि किसी न किसी तरह इस दुनियां में बने रहे.
     किताब में ऐसे चरित्रों को 'आत्मा' नाम दिया गया था जो अपनी मौत के बाद भी कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अपने जानने वाले लोगों को दिखाई देते रहे. इन आत्माओं का आगमन इसी तरह होता था, पहले उनसे जुड़ी कोई चीज़ या कोई बात सामने आती, फिर कभी अदृश्य, तो कभी प्रत्यक्ष रूप से वे अपने होने का आभास कराते. आश्चर्य की बात तो ये थी कि कुछ लोग इन आत्माओं से बात भी कर लेते थे और इनके बारे में पूरी जानकारी भी ले लेते थे. इन लोगों का आत्माओं के साथ कोई दैवीय सम्बन्ध जैसा होता.
     यदि कुछ दिन पहले किन्ज़ान ने यह सब पढ़ा होता तो शायद वह भी इस उम्र के बाकी लड़कों की तरह सारी बात को केवल मनोरंजन के लिए लिखे गए मनगढ़ंत किस्सों के रूप में ही स्वीकार करता, लेकिन अब वह ऐसा न कर सका. उसने खुद कुछ समय पहले अपने घर में किसी की अदृश्य उपस्थिति महसूस की थी.उसका मन उसे  अब इस बात पर यकीन दिलाने लगा था कि उसके घर में अवश्य किसी ऐसी ही आत्मा का वास है.
     उस रात जब किन्ज़ान अपने घर गया तो उसने देखा कि घर में कुछ अजीब और अपरिचित सी गंध फैली हुई है. उसे कमरे की दीवार पर टंगी एक तस्वीर भी बदली-बदली सी लगी. वह काफी दिनों से वहां थी, फिर भी किन्ज़ान को ऐसा लगा कि वह तस्वीर अपने मूल आकार से काफी बड़ी हो गई है. ऐसा कैसे हो सकता था? किन्ज़ान को ज़रूर कोई भ्रम हुआ होगा. या फिर दिन में पढ़ी गयी किताब का कोई मनोवैज्ञानिक असर उसे घर की चीज़ों पर दिखाई दिया हो.
     नहीं, यह नहीं हो सकता. यह कोई मनोवैज्ञानिक असर नहीं था, किन्ज़ान को अच्छी तरह याद था, कि उसके बिस्तर पर बिछी चादर लाल नहीं थी. लाल सुर्ख रंग ऐसा नहीं होता कि उसे कोई भूल जाये...[जारी...]      

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...