Thursday, March 22, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 15 ]

     ...दुनिया का यही कपट-भरा दस्तूर सब का पेट भर रहा है. गहरे पानी में आये कीट फिर लाचार होकर दूसरे जीवों का निवाला बनते हैं.
     किन्ज़ान को किसी ने बताया था कि न्यूयॉर्क में कोई ऐसा कीमियागर है जो प्लास्टिक की बॉल के भीतरी भाग में कोई ऐसा लेप लगाता है, जिससे मजबूती तो आ जाती है, पर बॉल का वज़न नहीं बढ़ता. किन्ज़ान एक बार वहां जाना चाहता था. उसे मैन-हट्टन की उस दुकान का पता भी मिल गया था.
     किन्तु वहां जाना आसान न था.साथ में बॉल को भी इतनी दूर ले जाने में खर्चा भी था और झंझट भी. पहले बफलो में ही एक ट्रायल के लिए अगली सुबह किन्ज़ान अपने मित्र के साथ नायग्रा झरने से लगभग सात किलोमीटर पहले   नदी किनारे पहुँचने की तैयारी करने लगा. सुबह-सुबह वहां तक जाने के लिए एक पिक-अप का बंदोबस्त भी उसने कर लिया.
     अगली सुबह अँधेरे ही दोनों मित्र जब ट्रायल के लिए निकले, तो जितनी स्पीड पिक-अप वैन की थी,उस से कहीं ज्यादा रस्बी के ब्लड-प्रेशर की थी. उस सुबह रस्बी ने किन्ज़ान के दिवंगत पिता को भी बहुत याद किया.
     जंगल के बीच एक गहरे पानी के साफ से किनारे के नज़दीक जब वैन रुकी तो एक बार उतर कर किन्ज़ान ने मुआयना किया. झटपट उसने कपड़े उतार डाले.इसे किन्ज़ान के संतुष्ट हो जाने का संकेत समझ उसके मित्र ने वैन से बॉल उतारने में अपना दिमाग लगा दिया.
     किन्ज़ान एक ऊंची छलांग भर कर पानी में कूद पड़ा. उसने ऊंची लहरों के उद्दाम वेग में गोता लगा कर चारों ओर चक्कर लगाया, चट्टानों और झाड़ियों का जायजा लिया, और फिर अपने दोस्त अर्नेस्ट को दूर से ही हाथ हिला कर इशारा किया.
     अगले पल अर्नेस्ट बॉल के भीतर था. वैन के ड्राइवर ने भी उसे सहारा दिया. पानी की लहरों पर बॉल हिचकोले खाती आगे बढ़ने लगी. वाटर-स्पोर्ट के किसी खिलाड़ी की सी चुस्ती से किन्ज़ान बॉल के इर्द-गिर्द चपलता से तैरता हुआ बढ़ने लगा. कभी बॉल किसी चट्टान से टकरा कर ऊंची उछलती तो भीतर बैठे अर्नेस्ट का जिगर नीचे डूबता. किन्ज़ान की आखों में किसी निष्पक्ष निर्णायक जैसी तत्परता आ जाती.
     बहते जल के प्रकृति में जितने रूप हो सकते हैं, वे सभी उस प्रपात की पूर्व-पीठिका में दर्ज थे. किन्ज़ान हाथ के हलके स्पर्श से बॉल को इधर-उधर धकेलता, जैसे वॉली-बॉल का कोई खिलाड़ी दुश्मन खिलाड़ी से बॉल को बचाने की कोशिश कर रहा हो.
     किन्ज़ान अपनी तैय्यारी से संतुष्ट तो नज़र आया, मगर उसके मन में एक बार न्यूयॉर्क पहुँचने की इच्छा भी बलवती हो गई. शायद सर्वाधिक जोड़ी आँखों में किन्ज़ान की छवि बसाने के लिए हडसन नदी  उसे वहां से पुकार रही थी...[ जारी...]    

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