Saturday, January 14, 2012

चीन की महत्वाकांक्षा के भारतीय साइड इफेक्ट्स

वैसे अब भारत में विचारधाराओं की उलट-पलट कोई अजूबा नहीं है. लगभग सभी पार्टियाँ राजनीति की थाली में बिना पैंदे के लोटों के समान रखी हुई हैं. हल्का सा भी ढलान जिधर हो, वही उनकी मंजिल है. कुछ चेहरे तो ऐसे हैं, कि नित-नए पैंतरे ही उनकी कुल ताकत हैं. मीडिया भी ऐसे चेहरों का मेक-अप मैन है.सरकार अल्पमत की है, यह उसकी मजबूरी है कि सांपनाथ या नागनाथ, जो मिलें उन्हें बगल में बैठाना है.
ताज़ा घटनाक्रम कम्युनिस्टों को लेकर है. रशिया की धूल बैठने पर ये लगभग अनाथ हो गए थे. पर अब चीन की मंद-मंद बयार इनके मुर्दों में जान फूंकने लगी है. उधर भारत में पांच राज्यों के आम-चुनाव को मिनी लोकसभा चुनाव कहा जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस की बंसी की धुन इनके कानों को रसीली लगने लगी है. ये उसके आगे फिर नाचने लगे हैं, और इनकी थिरकन देख कर कांग्रेस भी पुरानी मोह-ममता भूलने लगी है.   

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