Monday, December 5, 2011

इतना खाया कि अब जोर से भूख लगी है - यानी बात शिक्षा की

यह हमारे देश का बरसों पुराना शिष्टाचार है कि कोई घर आये तो बाहर आकर हम उसकी अगवानी करते हैं और उसके जाते समय उसे देहरी तक छोड़ने उसके साथ आते हैं.इस शिष्टाचार को सब जानते-समझते हैं, चाहे  पढ़े-लिखे हों या अनपढ़.शिक्षित लोग तो 'वेलकम' और  'सी-ऑफ' करने की प्रथा का  और भी जोर-शोर से पालन करते हैं.
इस नियम का अपवाद केवल तब होता है जब घर में किसी की मौत हो जाये, और आने वाले शोक प्रकट करने आ रहे हों. ऐसे में न तो किसी की अगवानी करते हैं, और न ही उसे छोड़ने बाहर तक साथ आते हैं.
पिछले कुछ सालों से हम सबको शिक्षा, व्यावहारिक शिक्षा और शिक्षा में नवाचार की बातें भी खूब बढ़-चढ़ कर करते रहें हैं.
यह भी एक सामान्य सी बात है कि घर आये मेहमान को आदर से आसन देकर बैठाया जाता है. चाहे आनेवाला अकस्मात भी आ गया हो, उसकी यथाशक्ति आवभगत करने की चेष्टा की जाती है, उसे चाय-पानी पूछा जाता है. गरीब से गरीब व्यक्ति भी इसमें कोताही नहीं करता.
हाँ, यदि आने वाला इस योग्य न पाया जाय तो इन बातों की अनदेखी भी की जाती है.अपना स्तर आंकने का यह एक जरिया भी माना जाता है कि हम कहीं गए तो हमारी आवभगत किस तरह हुई?
          हमारी सरकार ने सभी सरकारी अधिकारियों को एक पत्र भेजने का फैसला किया है कि यदि किसी भी विभाग में कोई "सांसद" महोदय तशरीफ़ लायें तो उनका सम्मान किया जाय, उनकी बात सुनी जाय, उनकी अगवानी की जाय, उन्हें छोड़ने बाहर तक आया जाय,उन्हें गंभीरता से लिया जाय.
सरकार में अधिकारी बनने के लिए उच्च-शिक्षित होना ज़रूरी है. "सांसद" बनने के लिए जनता में लोकप्रिय होना ज़रूरी है.तो फिर सरकार के इस पत्र का क्या अर्थ निकाला जाय?     

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