Monday, October 3, 2011

नौकरी का है क्या भरोसा, आज मिले कल छूटे-"ट्रांसपेरेंट एडमिनिस्ट्रेशन"

मेरे एक परिचित ने कल नौकरी छोड़ दी. घटना के कारणों पर कुछ दिन बाद जायेंगे, जब वे सिद्ध हो जाएँ. 
जब किसी को कोई काम दिया जाता है तो उसे उस काम के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है. एक बार प्रशासन ने निश्चय किया कि किसी भी नेता की सुरक्षा में जिन सुरक्षा-कर्मियों को लगाया जाये, उन्हें उस नेता के बारे में पूरी जानकारी दी जाये, ताकि सुरक्षा-कर्मियों का आत्म-विश्वास भी बढ़े और प्रशासन में पारदर्शिता आये. 
सुरक्षा-कर्मियों को एक ट्रेनिंग में बुलाकर उन नेताओं के सारे कार्य-कलाप अच्छी तरह समझाए गए, जिनकी सुरक्षा में उन्हें तैनात किया जाना था. 
अगली सुबह, फोन पर सारे नेता बार-बार सुरक्षा-कर्मियों को जल्दी भेजने का आग्रह कर रहे थे, पर प्रशासन विभाग परेशान था, क्योंकि सारे सुरक्षा-गार्ड नौकरी छोड़ कर जा चुके थे.
कई बार नियोजक को कर्मचारी पर विश्वास नहीं होता. तब भी नौकरी छूट जाती है- परदे पर फिल्म चल रही थी. एक सुन्दर बगीचे में हीरोइन खड़ी थी, हीरो गा रहा था- तुम कमसिन हो, नादाँ हो, नाज़ुक हो, भोली हो, सोचता हूँ मैं, कि तुम्हें प्यार ना करूँ...तभी दर्शक-दीर्घा से हीरोइन को सलाह देती हुई एक आवाज़ आई- चलो, अपना साइनिंग अमाउंट वापस ले जाओ, छुट्टी!

4 comments:

  1. जितना दाना पानी जहाँ पर होगा उससे ज्यादा आप चहाकर भी नहीं खा सकते।

    ReplyDelete
  2. ग्लासनोस्त? :)

    ReplyDelete
  3. 1.ji aapki baat bilkul sahi hai dana pani to utna hi milega jitna naseeb me hai , par tab kya karen jab samne wala 'hawa' khilana chahe?
    2.aapki baat samajh loon, tab boloon.

    ReplyDelete
  4. अगर शरीर में हिम्मत है तो सामने वाले को भी हवा खिलानी चाहिए, नहीं है तो दूसरा कार्य तलाश करना ठीक रहेगा। सरकारी नौकरी में तबादला आम बात है नौकरी नहीं जाती है, लेकिन निजी नौकरी में तो हाँ जी की नौकरी ना जी का घर होता है कुछ गडबड होते ही नई नौकरी तलाश भी करनी पडती है। इसलिये मैंने कहा था दाना-पानी वाली बात

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...