Monday, October 24, 2011

कौन बो गया इतना उल्लास, किसकी यादों से आ रहे हैं ये उजाले?

दुःख को गाना कभी नहीं छोड़ा जा सकता. दुःख और कष्ट से ही वो तान निकलती है, जिसे ईश्वर भी सुनता है.वह चाहे जहाँ हो, उस तक ये क्रंदन पहुँचता ही है. फिर उसे पश्चाताप होता है. वह सोच में पड़ जाता है कि यह क्या हुआ?वह दुःख की चादर को समेट लेता है.
और तब आ जाती है दीवाली. रौशनी और उमंग मिल कर कोना-कोना बुहार देते हैं, ताकि दुःख कहीं ठहर नहीं सके. 
आप सब को साल का यही पड़ाव मुबारक! दीवाली शुभ हो.    

3 comments:

  1. दीपावली की शुभकामनाएँ

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  2. साल की सबसे अंधेरी रात में
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
    भूल कर के घाव उन घातों के हम
    समझें सभी तकरार को बीती हुई

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    प्रेम की गढ लें इमारत इक नई

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  3. us imaarat par rang-rogan ka theka mera...vo bhi muft. sandeepji aap bhi madad karenge?

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