Thursday, October 6, 2011

वो कितना अच्छा, ये कितनी अच्छी,सब कितना बेहतरीन

आज सुबह अखबार में पढ़ा, कि सब को कभी-कभी "सकारात्मकता दिवस या सकारात्मकता सप्ताह" मनाना चाहिए. आज दशहरा है, मैंने सोचा सकारात्मकता दिवस मनाने का इससे बेहतर दिन और कौन सा होगा? आज ही के दिन तो नकारात्मकता पर तीर चलाने का कार्य सकारात्मकता ने किया था. 
घर में दूध सप्लाई करने वाले लड़के और कुकिंग करने वाली लेडी को मैंने आज 'सकारात्मक चिंतन' का टारगेट चुना. मेरे कुछ काम में व्यस्त होने पर वह लेडी दूध लेकर किचन में रखती है, और उसे गर्म भी करती है. जब दूध कुछ कम मात्रा में होता है,मैं दूध वाले को इसके लिए ज़िम्मेदार मानता हूँ. जब दूध प्योर नहीं लगता या ज्यादा पतला होता है, तब भी मैं उसे ज़िम्मेदार मानता हूँ. मैंने सोचा, आज मैं कम दूध के लिए उसके कंटेनर का दोष मानूंगा और दूध प्योर न होने का दोष भी गाय या भैंस को ही दूंगा. मैं यह भी नहीं सोचूंगा कि लेडी ने उसे गर्म करते समय कम या पतला किया होगा. 
लेकिन अब मैं सोच रहा हूँ, कि मैंने केवल व्यक्तियों के प्रति ही सकारात्मकता दिखाई, पशुओं और निर्जीव चीज़ों के प्रति तो मैं  नकारात्मक हो ही गया न? लेकिन यदि इन दोनों के प्रति भी सकारात्मक रहना है तो खुद के प्रति नकारात्मक होना होगा, क्योंकि दूध शुद्ध और पूरा न होने की स्थिति में सहनशीलता किसके कंधे पर बंदूख रख कर आएगी, अपने ही न ?सचमुच मुश्किल है पोजिटिव थिंकिंग !  

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