Saturday, September 10, 2011

"दी अहंकार एन्टरप्राइजेज़"

ईर्ष्या, अहंकार और होड़ नकारात्मक शब्द हैं,पर यह कभी-कभी सकारात्मक भी सिद्ध होते हैं.
एक बड़े पूंजीपति ने राम का एक मंदिर बनवाया.इस मंदिर में आधुनिक सोच के साथ आरम्भ से ही यह परिपाटी रखी गई कि वहां कोई प्रसाद न चढ़ाया जाये.
एक अन्य उनसे भी बड़े पूंजीपति की धर्मपत्नी उनके निमंत्रण पर यह मंदिर देखने गईं.वे इस बात से अनभिज्ञ थीं,कि यहाँ कोई प्रसाद नहीं चढ़ता है.वे परम्परावश अपने साथ प्रसाद ले गईं.वहां जाकर जब उन्होंने प्रसाद चढ़ाना चाहा,उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली.उनका अहम् इससे आहत हो गया.वे भला ईश्वर के यहाँ खाली हाथ कैसे जातीं?
फिर क्या था,उस मंदिर के आस-पास किसी भी कीमत पर उससे भी बड़ी ज़मीन की तलाश की गई.ज़मीन वहां तो नहीं मिल सकी,किन्तु शहर में अन्यत्र एक शानदार स्थान पर उपलब्ध हो गई.वहां ऐसा भव्य व आलीशान मंदिर बना,कि वह मंदिर आज शहर के तमाम देशी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है.
तो अब बताइये,क्या कहेंगे?-राम नमामि-नमामि-नमामि या अहम् ब्रह्मास्मि !

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...