Wednesday, September 28, 2011

'माननीय' की प्रेस-कॉन्फ्रेंस देख उन्होंने नूरजहाँ बनने की ठानी

जब उन्होंने देखा कि 'माननीय' की प्रेस-कॉन्फ्रेंस किसी कॉमेडी-शो की तरह हिट हो रही है, तो उन्हें बरबस जहाँगीर की याद हो आयी. साथ ही उन्हें यह भी याद आया कि अगर जहाँगीर कहीं कोई न्याय नहीं कर पा रहा, तो उन्हें उसकी मदद करनी चाहिए. आखिर वे भी तो नूरजहाँ की भूमिका में हैं? उनका दायित्व बनता है कि परदे के पीछे से जहाँगीर की ऐसे मदद करें, कि परदे के आगे जहाँगीर की किरकिरी न हो. वे नाश्ते की टेबल से ही शुरू हो गईं. 
बोलीं- सुनो जी, ये क्या हालत बना रखी है [देश की] कुछ लेते क्यों नहीं ? 
क्या लूं ? वे मायूसी से बोले. 
डिसीजन, उन्होंने सुझाया.
तू तो ऐसे पीछे पड़ जाती है, जैसे डिसीजन लेना मेरा काम हो ? वे बोले. 
तो किसका काम है ? उन्होंने हैरानी से पूछा. 
उनका नाम लेना मेरा काम नहीं है. उन्होंने पल्ला झाड़ लिया.
अच्छा बाबा, किसी का नाम-वाम मत लो, पर कमसे कम घोटालेबाजों को पकड़ो तो सही.उन्होंने शांति से समझाया. 
अरे पकडूं तो तब, जब वे कहीं भागें, वे तो मेरे चारों तरफ आराम से बैठे हैं. वे बोले. 
अजी, सच कहना, कहीं तुमभी उन्हीं में से ...  

2 comments:

  1. बहुत अच्छा! कंही तुम भी तो उन्ही में से नहीं ?आप थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह जाते हैं !

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  2. dhanywad.aapka utsahwardhan aise hi kahalwata rahe.

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