Sunday, August 7, 2011

कैटरीना, शीलाजी और चींटियाँ

बॉलीवुड का रिवाज़ है कि जो टॉप पर हो, उसका नाम सबसे बाद में लिया जाये, "अबव आल" वाले अंदाज़ में. लिहाज़ा कैटरीना की बात बाद में. 
राजनीति का रिवाज़ है कि जो बड़ा नेता हो, उसका नाम सबसे पहले. लिहाज़ा शीलाजी की बात सबसे पहले. शीलाजी दिल्ली की चीफ, और दिल्ली सबकी चीफ. लेकिन राजनीति का ये भी रिवाज़ है कि जो संकट में हो उसे सबकी नज़र से छिपा लिया जाये, और परदे के पीछे कर दिया जाये. अतः शीलाजी की बात भी बाद में. संकट टल जाने के बाद.
अब बचीं चींटियाँ. इनकी बात तो कभी भी कर लेंगे, पहले एक किस्सा सुनिए. गुजरात के एक कारखाने की बात है, कारखाने का मालिक दोपहर का खाना खाने गया था. अब यह परम्परा ही है कि जब कोई कारोबारी रोटी खाने लंच में जाता है तो कारोबार खुला ही छोड़ जाता है. लेकिन जब मालिक रोटी खाकर वापस आया, तो उसने देखा- मेज़ पर से माल गायब. संयोग देखिये कि कारखाना हीरे का था. यानि मेज़ पर से हीरे गायब, और वह भी एक,दो,तीन नहीं बल्कि पूरे पांच. मालिक ने रपट लिखाने में वक्त जाया नहीं किया बल्कि वह सीधे तफ्तीश में जुट गया.उसने कोना-कोना छान मारा, लेकिन उसे वहां चंद चींटियों के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस का कायदा है कि मौका-ए-वारदात पर जो मिले उस पर शक ज़रूर किया जाये. मालिक के पास पुलिस की नज़र और कारोबारी की अक्ल थी.अतः उसने चींटियों पर गहरा शक करते हुए वहां थोड़ी चीनी बिखेर दी. वह यह देख कर हैरान रह गया कि चींटियाँ चीनी को उठा कर दीवार की एक दरार में भर रहीं हैं.मालिक ने दरार को तोड़ डाला और यह देख कर दंग रह गया कि पाँचों हीरे वहीँ फंसे हैं. 
अब कैटरीना की बात. कैटरीना ने साल भर तक यह शोर मचा-मचा कर प्रचार किया कि शीला की जवानी हाथ न आनी. कैटरीना को यह थोड़े ही पता था कि खेल-खेल में "खेलों" की रिपोर्ट आ जाएगी, और फिर सारे हाथ शीलाजी की ओर ही बढ़ेंगे.अब सारे "कारोबारी" चाहे शीला जी को बचाना भी चाहें, पर चींटियों का क्या होगा? कहीं वे कतार बना कर शीलाजी की ओर बढ़ गईं तो ?          

3 comments:

  1. बहुत सटीक आलेख। राजनीति की हालत ऐसी हो गयी है कि आजकल अपराध-समाचार और व्यंग्य-विधा का अंतर पता ही नहीं लगता।

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  2. rajneeti hamare-aapke sath vyangy hi kar rahi hai. shayad dukhon ko bhi chathkhare lekar sahne se ve kuchh kam lagen.

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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