Wednesday, June 22, 2011

आपके मानदंडों पर कैसे खरा उतरे अफ्रीका?

आप अमीर हैं या गरीब? इस प्रश्न के अलग-अलग मुल्कों में अलग-अलग उत्तर हैं. फिलहाल हम बात करें भारत की. सरकार ने एक रेखा खींच रखी है.इस रेखा के इस पार अमीरी रहती है, और उस पार गरीबी. संख्या पर मत जाइए- कोई से दो कागज़ ऐसे नहीं हैं, जो अमीरों या गरीबों की संख्या बराबर बता सकें. वैसे भी कागज़ का क्या है, उसकी ज़िन्दगी होती ही कितनी सी है? आज जिसे अखबार कहें, कल रद्दी कहलाता है. अखबार से ज्यादा 'औथेनटिक' तो नेता होते हैं.जो एक दिन नेता है, उसका बेटा, उसका पोता, उसका परपोता सब हमेशा  नेता ही होते हैं. तो अगर नेताओं की मानें,  तो हमें इस कठिन सवाल के दो 'सिंपल' उत्तर मिलते हैं.यदि सत्तापक्ष का नेता है तो वो कहेगा कि अमीर करोड़ों में हैं, गरीब ढूंढना पड़ेगा.यदि विपक्ष का नेता है, तो वो कहेगा- सब भूखे हैं, सब बेरोजगार हैं, किसी को पीने का पानी नहीं है, अमीरी किसे कहते हैं? 
आइये, हम अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ और सवाल का उत्तर खुद ढूंढें.हमारे कर-अधिकारी जब आपकी मिल्कियत आंकते हैं, तो पूछते हैं कि आपके पास नकदी कितनी है? हीरे-जवाहरात कितने हैं, शेयर कितने हैं, कोठियां-बंगले कितने हैं, और कारें कितनी हैं?अब यदि आपमें कुछ कर गुजरने का माद्दा हो, तो कह दीजिये- जेवरात मेरे नहीं, पत्नी के हैं, शेयर मेरे नहीं बच्चों के नाम हैं, कोठियां मेरी नहीं, बाप-दादों की हैं, कारें मुझे नहीं, कुत्तों को घुमाने के लिए हैं, और नोट यहाँ नहीं, स्विटज़रलैंड में हैं,तो बस, हो गए आप गरीब. अब आराम से खादी के कपड़े पहन कर घूमिये.
यदि किसी के पास गगन-चुम्बी  अट्टालिकाएं न सही,  लम्बे-चौड़े बाग़-बगीचे हैं, हीरे-जवाहरात तन पर नहीं, ज़मीन में गढ़े हैं,उसकी अमीरी कैसे दिखेगी? अफ्रीकी देशों की खुशबू से कई दूसरे देश आबाद हैं.अफ्रीका के  पास छीनने का इतिहास न सही, बांटने का अतीत तो है ही.लुटाने की दरिया-दिली के भी आखिर कुछ तो नंबर होते ही होंगे?              

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