Friday, May 6, 2011

रावण जी कंस जी और हरिनाकश्यप जी

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि हजारों साल गुज़र जाने के बाद भी हमारे देश के किसी भी भाग में, किसी भी काल में, किसी भी उम्र के किसी भी व्यक्ति ने कभी भी बोलने या लिखने में रावण के लिए 'वे आये' या 'वे राजा थे' जैसे संबोधन का इस्तेमाल नहीं किया. हमेशा उसके लिए खालिस एक वचन का इस्तेमाल ही किया गया, जबकि यह भी सब जानते हैं कि वह एक विद्वान राजा था. इसी कालजयी कथानक में जबकि भालू, बन्दर या गरूड पात्रों को आदरणीय और सम्माननीय संबोधनों से नवाज़ा गया है. संसार के दूसरे सबसे बड़े देश में हज़ारों साल तक एक भी व्यक्ति ने कभी अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखा. ऐसा नहीं है कि देश में सभी धार्मिक प्रवृत्ति के सीधे-सादे लोग ही हैं. यहाँ राक्षसी प्रवृत्ति के लोग भी हैं, चोर, डाकू, लुटेरे, भ्रष्टाचारी, नीच, अधर्मी सब तरह के लोग भी हैं. लेकिन वे भी कभी अपने बच्चों के लिए, घर-महल्ले के लिए, सडकों या दूकानों के लिए यह नाम नहीं स्वीकार पाए. नाम को स्वीकार करना तो दूर इस नाम को कभी आप, तुम या वे जैसा संबोधन तक नहीं मिला. इसका मतलब यही है कि अपराधी और भ्रष्टाचारी के लिए नफरत और घृणा अप्रत्यक्ष रूप से समाज की फिजा में घुली होती है. यह किसी एक समय के लोगों की बात नहीं है. त्रेता में जो भावना रावण के लिए थी वही द्वापर में कंस के लिए भी थी.कभी किसी ने कंस को 'आये-गए' कह कर नहीं पुकारा होगा. 
लेकिन ये कलियुग है. त्रेता और द्वापर में न हुई बातें इस युग में भी नहीं होंगी, ऐसी गारंटी कोई नहीं दे सकता. त्रेता या द्वापर में राजा बनने के लिए राजा के घर में जन्म लेना पड़ता था.या फिर छल-कपट से किसी राजा को मार कर उसका राज्य हड़प करना पड़ता था. पर अब तो कैसे भी अपनी प्रजा से वोट लेने पड़ते हैं. वोट लेने के लिए वो सब करना पड़ता है जो त्रेता या द्वापर में लोग सोच भी नहीं सकते थे. रावण को रावण जी, कंस को कंस जी और हरिनाकश्यप को हरिनाकश्यप जी भी कहना पड़ता है.      

1 comment:

  1. एक मित्र के फेसबुक स्टेटस से:
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