Saturday, March 5, 2011

क्या बयां करती है ये सादगी

पूरी दुनिया में तहलका मच गया था। बात ही कुछ ऐसी थी। कमसे - कम मैंने तो अपने सत्तावन साल के जीवन में किसी अख़बार में इतने बड़े अक्षरों में लिखी ' हैडलाइन ' नहीं देखी।भारत जैसे देश में, जहाँ दिन भर उपवास करने के बाद रात को महिलाओं को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करते देखा जाता है, वहां तो यह बात कल्पनातीत ही थी। मानव चाँद पर जा उतरा था।
अमेरिका के नील आर्म स्ट्रोंग की बात की जा रही है। वे चन्द्रमा की सतह पर कदम रखने वाले विश्व के पहले इन्सान बने थे। उन्होंने अपने दो और साथियों के साथ इतिहास रच दिया था । वे रातोंरात विश्व के हीरो बन गए थे। उनका पूरा जीवन एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक की तरह प्रयोगों में ही व्यतीत हुआ।
लेकिन शायद बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि उनके जीवन में भी साधारण लोगों की भांति छोटे मोटे कष्ट उसी तरह आये, जैसे किसी गुमनाम आम-आदमी के जीवन में आते हैं।एक बार तो उनके घर में भीषण आग लग गयी। सब कुछ जल कर खाक हो गया। ऐसे में उन्होंने कुछ देर के लिए बेघर हो जाने का दर्द भी झेला। उनके पड़ोसियों ने ऐसे में उनकी काफी मदद की।उन्होंने अपना मकान दोबारा बनवाया।और इस दोबारा मकान बनवाने में उन्होंने यह अनुभव भी किया की वैज्ञानिक होने के कारन वे अपने मकान के पुख्ता पन पर समुचित ध्यान नहीं दे पाए। शायद इसी से पहला हादसा हुआ। दूसरी बार मकान बनवाते समय उनकी पत्नी ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि पहले जैसी कमियां न रह जाएँ।
मुझे ऐसा लगता है कि यह भी अमेरिकी जीवन का एक 'प्लस पॉइंट ' है कि व्यक्ति को वीआइपी होने के बाद भी अपने निजी कामों के लिए आम आदमी ही समझा जाये।

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