Saturday, March 12, 2011

ऐसे दिन किसी पर कभी न आयें

जीवन के प्रति हमारा नजरिया प्राय दो तरह से काम करता है- एक तो यह, कि जीवन हमारा है, और यह तभी तक है, जब तक हम हैं।यदि हम दुनिया से जा रहे हैं, तो अब हमें किसी बात से कोई मतलब नहीं है। कहीं भी, कुछ भी हो जाये। चाहे दुनिया तहस-नहस हो जाये। हमें क्या करना?
दूसरा यह, कि जीवन हमारा है। दुनिया हमारी है, जब तक हैं, शान से जियेंगे, जब नहीं रहेंगे तब भी हमारे परिजन तो रहेंगे। कुछ भी ऐसा न करें कि दुनिया को किसी भी तरह का नुकसान हो। बल्कि इस बगिया को इस तरह छोड़ कर जाएँ कि हमारे जाने के बाद भी हमारे बच्चे और दूसरे लोग यहाँ आराम से रहें और हमें याद भी करें।
आपने देखा होगा कि जीवन का यह दूसरा रूप इंसानों ही नहीं, बल्कि अन्य प्राणियों में भी कभी-कभी दिखाई दे जाता है। जब एक गाय अपने बछड़े को बचाने के लिए शेर के सामने आ जाती है, तब यही भावना काम करती है। उस समय गाय यह नहीं सोचती कि मेरे मरने के बाद भी शेर मेरे बछड़े को मार ही सकता है,अतः अभी अपनी जान बचालूं।उसकी हार्दिक इच्छा यही होती है कि उसके जीते-जी उसके बछड़े को कुछ न हो।
जीवन का यही रूप स्वस्थ दृष्टिकोण है। जहाँ तक हो सके हमें इसी भावना का पोषण करना चाहिए।
और आज तो हमारे सामने एक इससे भी बड़ा सवाल है। हम कल रात से जीवन को तहस-नहस होता देख रहे हैं।हमारे जाने के बाद नहीं, यह तांडव तो हमारे जीते जी हुआ है। प्रकृति की यह विभीषिका उन लोगों को झेलनी पड़ी है, जो मानसिक और तकनीकी रूप से अत्यंत सक्षम हैं।जापान के इस विनाशकारी भूकंप को हम यह कह कर अनदेखा नहीं कर सकते कि यह एक प्राकृतिक आपदाएं झेलने के अभ्यस्त देश की सामान्य भौगोलिक घटना है।
हमें अपनी शक्ति-भर कोशिश इस दुःख को कम करने की ज़रूर करनी चाहिए।

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...