Wednesday, February 23, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 9

घर बैठे ऊब बोरियत सब दिल्ली अब दूर करेगी लो
ये पॉप सुनो झूमो-थिरको रामा-कृष्णा के बैले लो
डिस्को-मेलौडी-जैज़ ट्विस्ट इसके मन भाता ब्रेकडांस
घूमर-भंगड़ा-गरबा भूली अच्छी आज़ाद हुई दिल्ली
आज़ादी के दीवानों को ये ढूढ़-ढूंढ कर लाती है
ज़ख्मों पर नमक छिड़कने को अंग्रेजी गीत सुनाती है
सम्मान तिरंगा खुली साँस जिन लोगों ने है इसे दिया
बदले में देती है उनको दो मिनट मौन बस ये दिल्ली
सबको अब ऊर्जा देती है उजली सी टोपी खद्दर की
चरखा रहता तस्वीरों में सब बात है अपने मुकद्दर की
आ बैल चलें अब खेतों में ,भूखी ना सोवे ये दिल्ली
बोयें विश्वास उगायें छल, हम-तुम भी हो जाएँ दिल्ली
दिल्ली मंडी है मेलों की सबके कर्मों को बेचेगी
फेंकेगी कीचड़ में पत्थर और दामन अपना खेंचेगी
पहले दे देगी मात तुझे पीछे शतरंज बिछाएगी
निगलेगी सात नीतियां तब ' पॉलिसी 'कहेगी एक दिल्ली

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...