Thursday, February 24, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 12

जब वोटों के दिन आते हैं दिल्ली खा जाती है चंदा
फिर सूद-मुनाफाखोरों का बरसों तक चलता है धंधा
नेता हो जाते शेर सभी , जनता बनती भीगी-बिल्ली
तांडव होता महंगाई का, ता-ता-तत-थई करती दिल्ली
ये सबका मोल लगाती है लिख देगी तेरा भी लेखा
तू चम्पी कर , पद-रज लेले फिर नाम-मान कुछ भी लेजा
हों मौन तो शेरों-चीतों को परिवेश खुला देती दिल्ली
कोई विपक्ष में बोले तो नज़रों से दूर करे दिल्ली
बिल्ली पर कह कर वार करे,शक है चूहों को खाने का
पर ढूंढ न पाए ये सबूत आदम-खोरों के कर्मों का
आरोप लगें पर हों न सिद्ध, तू कुछ भी कर बस उजला रह
गन्दगी नहीं बर्दाश्त इसे है पर्यावरण-प्रिय दिल्ली
तू डाल-डाल हम पात-पात ,हैं इस से भी कहने वाले
जब सवासेर मिल जाते हैं आता है ऊँट पहाड़ तले
कुछ ऐसे भी हैं चिड़ीमार दिल्ली से ही धोखा करते
मदिरा-कन्या-चांदी पर ये देने की सोच रहे दिल्ली

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