Sunday, July 18, 2010

हलके स्पर्श से साफ हो जाता है शीशा

मैंने कुछ दिन पहले हिंदी साहित्य के इतिहास की पड़ताल करते समय देखा था क़िकुछ लेखकों के बारे में गलत जानकारियां दर्ज हैं.पता नहीं ये उनकी खुद की भूल है या किसी और की.बहरहाल हम सब को कभी कभी ऐसी बातोंको जाँच कर दुरुस्त करने का श्रम करना चाहिए.कभी कभी मैं सोचता हूँ क़ि हमारी नई पीढी बहुत ताज़ा विचारों को लेकर आती है.ऐसे में मुझे लगता है क़ि हमें मंच के एक ओर हटकर उन्हें जगह देनी चाहिए.याद रहे क़ि ऐसा करतेसमय हमारे मन में कोई अहसान का भाव नहीं आना चाहिए क्योंकि युवाओं की खुद्दारी इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगी .युवा मन किसी सहारे को भी आसानी से स्वीकार नहीं करता.इसे उसकी जिद नहीं बल्कि आत्मविश्वास समझना चाहिए.हाँ इतना ज़रूर है क़ि यदि हम उन्हें कोई ऐसी गलती करते देखें तो पार्श्व में रह कर उसे दुरुस्त करने की कोशिश ज़रूर करें.यहाँ भी ये सुनिश्चित कर लेना बहुत ज़रूरी है क़ि वह वास्तव में गलती हो.मेरा आशय ये कदापि नहीं है क़ि हम युवाओं से डर कर रहें.क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो युवाओं का अपने भविष्य परविश्वास कम होगा.उन्हें भी तो आखिर कभी युवावस्था त्यागनी है.सब इसी तरह चलेगा क्योंकि आखिर जीवन एक रिले रेस ही तो है.

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